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ETF लिक्विडिटी, क्रिएशन, और Authorised Participants का रोल

ETF लिक्विडिटी, क्रिएशन, और Authorised Participants का रोल
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ETF ने पहले ही दुनिया में तहलका मचा दिया है और अब भारत इसे अपनाने में बढ़ोतरी देखी जा रही है क्योंकि इंवेस्टर्स अब इसके अनेक फायदों के बारे में जानने लगे हैं – जैसे कम कॉस्ट, बढ़ी हुई ट्रॉन्स्परेंसी, स्टॉक की तरह किसी भी समय लेन-देन करने की काबिलियत आदि।

फिर भी, कई भारतीय इंवेस्टर्स ETF में इंवेस्ट करने से दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें यह लगता ​​है कि ETF लिक्विड नहीं है – यानी ETF यूनिट्स को ट्रेड करने वाले ज्यादा लोग नहीं हैं, और इस वजह से, इंवेस्टर्स को यूनिट के NAV से अधिक भुगतान करना पड़ता है अर्थात ETF यूनिट्स को खरीदने/बेचने के लिए (ऊंची बिड/आस्क स्प्रेड)।

“ETF को चुनते समय लिक्विडिटी महत्वपूर्ण पैरामीटर्स में से एक है क्योंकि यह इंवेस्टर्स की cost of ownership को प्रभावित करता है”, शरवान गोयल कहते हैं, जो UTI म्यूचुअल फंड में 4 ETF के फंड मैनेजर हैं, जो भारत में सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) में से एक है।

किसी भी स्टॉक का बड़े पैमाने पर व्यापार करना एक जानी-मानी मार्केट रिस्क है – यदि स्टॉक के पर्याप्त विक्रेता नहीं हैं (जब आप खरीदना चाहते हैं), तो कीमत बढ़ती जाती है और सप्लाई/विक्रेताओं की इस कमी के कारण कॉस्ट बढ़ जाती है। लेकिन स्टॉक के विपरीत, ETF में लिक्विडिटी आसानी से Authorised Participants (APs) नामक विशेष मार्केट-मेकर्स द्वारा बनाई जा सकती है, जिन्हें एक्सचेंज्स पर ETF लिक्विडिटी प्रदान करने के लिए AMCs द्वारा पहले से ही अपॉइंट किया जाता है। किताबी तौर पर, यह ETF को उसके इंवेस्ट किए हुए खास स्टॉक जितना ही लिक्विड बनाते है। आइए समझते हैं कि कैसे।

ETF लिक्विडिटी कैसे बनाई जाती है?

म्यूचुअल फंड में एक सब्सक्रिप्शन/रिडेम्पशन प्रक्रिया होती है, जिसमें आमतौर पर 1-2 दिन लगते हैं, जहां एक विशेष AMC इंवेस्टर्स को यूनिट्स इशू/रिडीम करते हैं। जबकि AMC ऐसे ETF यूनिट्स भी इशू करते हैं, जिनके पास NAV है, इन यूनिट्स को एक्सचेंज पर तुरंत खरीदा और बेचा जा सकता है, इस प्रकार यह तुरंत लिक्विडिटी देता है।

ETF यूनिट्स की “क्रिएशन/रिडेम्प्शन” प्रक्रिया के वजह से ETF यह लिक्विडिटी प्रदान कर सकते हैं, जिसमें Authorised Participants (AP) नामक थर्ड पार्टीस शामिल हैं।

जब कोई AMC नए ETF यूनिट्स बनाना चाहते हैं, चाहे वह New Fund Offering (NFO) के लिए हो या मौजूदा फंड की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, यह इन थर्ड-पार्टी AP की ओर रुख करते हैं – वे ब्रोकरेज हो सकते हैं (Edelweiss Securities Ltd.), विशेषज्ञ कैपिटल-मार्केट फर्म्स (जैसे Parwati Capital Market Pvt. Ltd.) या अन्य बड़े फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन जिनके पास AMC की राय में बहुत अच्छी खरीद शक्ति है।

AP उन स्टॉक्स/सिक्यॉरिटीज़ का अधिकार लेता है, जिन्हें ETF होल्ड करना चाहता है – उदाहरण के लिए, जब कोई ETF जो निफ्टी-50 या BSE-100 को ट्रैक करता है वह बढ़ी हुई मांग के वजह से और ज्यादा ETF यूनिट्स चाहता है, तो AP संबंधित इंडिसीस के खास स्टॉक्स को खरीद लेगा ठीक उसी वेटेज में जिसमें वह इंडेक्स में हैं। AP इन स्टॉक्स को AMC को डिलिवर करेगा, जो उस विशेष ETF को रखते है, और बदले में उसी मूल्य के ETF यूनिट्स का एक ब्लॉक पाते है ।

AP को सौंपी गई ETF यूनिट्स की कीमत NAV पर आधारित होती है – न कि उस मार्केट मूल्य पर जिस पर ETF का व्यापार होता है। लेकिन AP को इन यूनिट्स को ओपन मार्केट में बेचना पड़ता है, जिससे वह एक स्प्रेड कमाते है (NAV से अधिक कीमत)।

AMC और AP दोनों को लेनदेन से फायदा होता हैं: AMC को वह स्टॉक्स मिलते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है, ETF को इंडेक्स/स्ट्रेटेजी से इन-लाइन रखने के लिए, और AP को स्प्रेड और मुनाफा कमाने के लिए ETF यूनिट्स रीसेल करने के लिए मिलते हैं।

यह प्रक्रिया रिवर्स में भी काम करती है, यानी जब AMC यूनिट्स को रिडीम करना चाहते हैं या जब खरीदारों की तुलना में अधिक विक्रेता होते हैं। इस मामले में:

  1. AP बड़े पैमाने पर मार्केट से ETF यूनिट्स खरीदते हैं, जो आमतौर पर मार्केट मूल्य से नीचे मिलते हैं
  2. इन ब्लॉक्स को फिर AMC को रिडेम्प्शन के लिए दिया जाता है
  3. बदले में, AP को समान मूल्य की ख़ास स्टॉक/सिक्यॉरिटीज़ मिलती हैं>
  4. AP तब प्रीमियम कमाने के लिए ओपन मार्केट में इन यूनिट्स को बेचते हैं

क्या ETF लिक्विडिटी अभी भी एक चिंता का विषय है?

2000 के दशक की शुरुआत में ETF मार्केट के शुरुआती चरणों में लिक्विडिटी निश्चित रूप से एक चिंता का विषय थी, लेकिन ETF मार्केट हाल के वर्षों में बहुत बड़ा हो गया है। “हमने बोर्ड मार्केट इंडिसीस के आधार पर ETF की लिक्विडिटी में सुधार देखा है। लगभग सभी ETF उत्पादों का हर महीने का कारोबार मई 2019 में ₹4900 करोड़ से अधिक था, जबकि अप्रैल 2012 में यह लगभग ₹1400 करोड़ था”, UTI के शारवान गोयल कहते हैं । “हालांकि, यह ग्लोबल पीयर्स की तुलना में अभी भी कम है”, उन्होंने आगे कहा।

ETF Liquidity Growth

Note: 2012 figures are only April onwards | Source: NSE & BSE Filings

रिटेल इंवेस्टर्स को क्या करना चाहिए?

ETF में हाल के वर्षों में असाधारण बढ़त देखी गई है – जिसमें सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation, EPFO) शामिल हैं – और म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले ETF के कई फायदों को देखते हुए यह ट्रेंड जारी रहने की संभावना है। इससे ETF की लिक्विडिटी में और भी अधिक सुधार होता रहेगा।

लेकिन यहाँ एक दिलचस्प मोड़ है – भले ही बिडआस्क स्प्रेड NAV से थोड़ा अधिक होता है जब आपको लेनदेन करना होता है, लेकिन याद रखें कि आप केवल तभी भुगतान करते हैं यदिजब आप लेनदेन करते हैं। अगर वह बहुत ज्यादा नहीं है, तो उन सभी पैसों के बारे में सोचिए, जो आप कम एक्स्पेंस रेश्यो में बचाएंगे।

वास्तव में, Authorised Participants की यह क्रिएशन/रिडेम्प्शन प्रक्रिया और एक्सचेंज्स पर ETF यूनिट्स की खरीद/बिक्री ETF को लॉन्ग-टर्म/बाए-एंड-होल्ड वाले इंवेस्टर्स के लिए उचित बनाते है। ETF ऐजुकेशन सीरीज़ पर हमारी अगली पोस्ट में इसके बारे में और पढ़ें।

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यह ETF एजुकेशन सीरीज में दूसरा पोस्ट है। यदि आप एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स के लिए नए हैं या उनके बारे में अधिक जानने के इच्छुक हैं, तो हमपूरी श्रृंखला पढ़ने की सलाह देते हैं:

  1. 1. ETF101 – ETF क्या है?
  2. 2. ETF लिक्विडिटी, क्रिएशन, और Authorised Participants का रोल
  3. म्यूचुअल फंड्स की तुलना में ETF बेहतर क्यों हैं?
  4. 4. 3 स्टॉक मार्केट क्रैश जिन्होंने इंवेस्टमेंट को बदल दिया:MF और ETF की शुरूआत
  5. ETF – भारत में विकास और विस्तार

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