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निवेश की दुनिया को जानें

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निवेश की दुनिया को जानें

Investments Ecosystem
Author Vikas Bardia
Published June 26, 2019
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Reading Time: 6 minutes

इन्वेस्टमेंट की दुनिया इतनी भी आसान नहीं है। सालों तक काफी अभ्यास करके और अनेक तरीक़ों से काम करके इस दुनिया में आराम से सफ़र करना मैंने सीख लिया है- लेकिन नए इन्वेस्टर्स के लिए यह काफी मुश्किल हो सकता है जो अभी सोच ही रहे हैं या तो जिन्होंने अपने पैसे इन्वेस्ट करने का एक हिम्मत वाला और समझदारी भरा निर्णय लिया है। शुरुआत करेंगे इन्वेस्टमेंट के इकोसिस्टम और सिक्योरिटीज़ को समझने से – उसमें कौन एक्टर्स हैं, उनका क्या रोल है, कहां इन्वेस्टमेंट किया जा सकता है, आदि। यह आपको एकदम से तो अमीर नहीं बनाएगा, लेकिन यह आपको एक आइडिया देगा कि आपके इन्वेस्टमेंट के सफर पर आपको कैसे कदम उठाने चाहिए।

एक बार जब मैं समझ गया कि इन्वेस्टमेंट इकोसिस्टम कैसे काम करता है, तो एक पार्टिसिपेंट का रोल, उसकी ज़िम्मेदारी और उनके उद्देश्य ज़्यादा समझ में आ गए – और मेरे लिए क्या सबसे अच्छा है उसे जानना बहुत आसान हो गया। मुझे आशा है कि इस गाइड से आप भी यह सब आसानी से समझ पाएँगे।

 

मार्केट पार्टिसिपेंट वे लोग और संगठन  हैं जो कैपिटल मार्केट में पैसा सीधा खुद लगाते हैं या मीडिएटर्स के ज़रिए इन्वेस्ट करते हैं। इसके दो मुख्य प्रकार हैं:

  • रिटेल इन्वेस्टर:यह आप और मेरे जैसे ही लोग हैं। अक्सर जब रिटेल इन्वेस्टर कुछ राशि से ज़्यादा केपिटल इन्वेस्ट करता हैं, तो उसे उच्च- नेटवर्थ व्यक्ति High-Net worth Individual (HNI) इन्वेस्टर कहते है।
  • संस्थागत इन्वेस्टर:रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट पूल जैसे म्यूचुअल फंड, हेज फंड, निगम, बैंक और ट्रस्ट, चैरिटी जैसे संगठन सब संस्थागत इन्वेस्टर होते हैं। वे इंडियन या विदेशी हो सकते हैं। इनके पास ज़्यादा केपिटल होने के कारण यह मार्केट में ज़्यादा इन्वेस्टमेंट करते है और यह मार्केट मूवर्स होते हैं।

 

रिटर्न पाने के लिए मार्केट पार्टिसिपेंट जो इन्वेस्टमेंट करते हैं वे एसेट्स कहलाते है। कुछ आम लोकप्रिय एसेट्स के प्रकार हैं:-

  • फिक्स्ड इंकम: यह ऐसी एसेट्स है जो एक निश्चित समय में पहले से ही तय किया हुआ फिक्स्ड रिटर्न देती हैं। फिक्स्ड डिपॉज़िट (FD) इसका एक उदाहरण है और यह भारत में सबसे आम इन्वेस्टमेंट है।
  • कमोडिटी: यह फिज़िकल एसेट्स हैं, जैसे की सोना, चांदी, चीनी आदि, जिनका उपयोग व्यापार और इन्वेस्टमेंट करने के लिए किया जाता है।
  • इक्विटी:यह फ़ाइनेंशियल एसेट्स हैं जो किसी कंपनी में मालिकी का एक हिस्सा देती है – इन्वेस्टमेंट के बदले में, इन्वेस्टर को प्रोफ़िट मिलता है।
  • रियल एस्टेट:यह फिज़िकल एसेट्स हैं जैसे ज़मीन या रेसीडेंसियल/ कमर्शियल प्रॉपर्टी।

 

इंस्ट्रूमेंट्स लोगों को किसी एसेट में इन्वेस्ट करने में मदद करते हैं। कुछ आम लोकप्रिय इंस्ट्रुमेंट इस प्रकार हैं:

  • डाइरेक्ट: यह क्लासिक रूप है जहां एक इन्वेस्टर सीधे एसेट का मालिक होता है। यह या तो फिज़िकल रूप में हो सकता है (ज़मीन, स्टॉक, सोना, आदि) या इलेक्ट्रॉनिक ( डीमैट स्टॉक, डिजिटल सोना, आदि)।
  • म्यूचुअल फंड:म्यूचुअल फंड 1920 के दशक में आया एक फ़ाइनांसीयल इनोवेशन है, जो बहुत सारे इन्वेस्टर्स द्वारा किए गए इन्वेस्टमेंट का एक कॉमन पूल है।
  1. इसकी देख-रेख एक फंड मैनेजर द्वारा की जाती है।
  2. इन्वेस्टमेंट के बदले में, इन्वेस्टर्स को पोर्टफोलियो में यूनिट्स मिलते हैं।
  3. इन्वेस्टर अपनी कुल इन्वेस्टमेंट की कुछ परसेंट राशि का पेमेंट करते हैं जो फंड मैनेजमेंट और दूसरे खर्चे जैसे ट्रांजेक्शन ख़र्च, मार्केटिंग, अकाउंटिंग आदि में ख़र्च होता है। यह रोज़ काटा जाता है।
  • एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETF): 1990 के दशक में शुरु हुए ETF भी म्यूचुअल फंड के जैसी ही सिक्योरिटीज़ की एक बास्केट है, फर्क सिर्फ इतना है कि यह एक्सचेंज पर ट्रेड करते हैं जहां इन्वेस्टर अपने ETF यूनिट्स खरीद बेच सकते हैं। ETF में दो फायदे एक साथ मिलते हैं :- म्यूचुअल फंड का डायवर्सिफिकेशन का फायदा और सिंगल स्टॉक की लिक्वीडीटी का फायदा।
  • smallcases: 2015 का यह सबसे नया इनोवेशन हैं, स्टॉक या ETF के डायवर्सिफ़ाइड पोर्टफोलियो को smallcase कहते हैं जो की एक फिक्स्ड इन्वेस्टमेंट पॉलिसी या थीम /सेक्टर को दर्शाता  हैं। वे इन्वेस्टर्स को स्टॉक़्स की सीधी मालिकी देते हैं और उस पर कोई एक्स्पेंस रेशियो नहीं होता है। इसके बजाय, लेनदेन की गई राशि पर इन्वेस्टर केवल एक स्टैंडर्ड ब्रोकरेज (लगभग 0.3%) का पेमेंट सिर्फ़ लेनदेन के समय करते हैं, रोज़-रोज़ नहीं।

 

भारतीय सिक्योरिटी और विनिमय बोर्ड (SEBI) भारत में कैपिटल सिक्योरिटी मार्केट का नियंत्रण करता हैं। यह 1988 में स्थापित किया गया था और इसे SEBI अधिनियम, 1992 से भारत की संसद द्वारा इसे अधिकार दिए गए हैं। सभी सिक्योरिटीज और इन्वेस्टमेंट इकोसिस्टम – सभी मार्केट पार्टिसिपेंट्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर, और मीडियेटर- SEBI के नियंत्रण में आते हैं।

    

 इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर वे कंपनियाँ/संगठन हैं जो कैपिटल मार्केट में इंस्ट्रूमेंट्स के निर्माण और लेनदेन के लिए फिज़िकल और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर देते हैं।

  • एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMCs): इन्हें म्यूचुअल फंड हाउस भी कहते है, वे नए-नए म्यूचुअल फंड स्कीम बनाते हैं, लॉन्च करते हैं और चलाते हैं। HDFC म्यूचुअल फंड, रिलायंस म्यूचुअल फंड जैसी AMCs ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीम चलाती हैं जिनके उद्देश्य एक जैसे होते हैं, लेकिन फीस, फंड मैनेजमेंट स्टाइल, इत्यादि में कुछ फ़र्क़ हो सकता है। मार्च 2019 तक, भारत में 44 AMCs हैं। 3 सबसे बड़े एसेट अंडर मैनेजमेंट (AuM) नीचे बताए गए हैं:-
  1. HDFC म्यूचुअल फंड- AuM में 3,42,290 करोड़ 
  2. ICICI प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड – AuM में 3,20,792 करोड़
  3. SBI म्यूचुअल फंड – AuM में 2,83,806 करोड़ 
  • एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (AMFI): यह भारत के सभी 44 एक्टिव AMCs का एक प्राइवेट एसोसिएशन है। AMFI भारत में म्यूचुअल फंड के विकास के लिए एक रजिस्टर्ड इंडस्ट्री स्टैंडर्ड ऑर्गनाइज़ेशन है –और इसी ने “म्यूचुअल फ़ंड सही है” का आकर्षक और सफल अभियान स्पॉन्सर और लॉन्च किया था।
  • एक्सचेंज: यह स्टॉक और सिक्योरिटीज़ को ट्रेडिंग करने की जगह है। भारत में 2 मुख्य एक्सचेंज हैं, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE), जो एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज भी है ।
  • डिपॉसिटरीज़: यह वह प्राइवेट कंपनियां है जो रेग्यूलेटर के पास रजिस्टर्ड होती हैं। यह इन्वेस्टर्स की ओर से इंस्ट्रूमेंट्स को इलेक्ट्रॉनिक रूप में डीमैट या डीमैटेरियलाइज्ड रूप में रखती हैं।
  1. जब ट्रेड किया जाता है तो अकाउंट्स के बीच स्टॉक ट्रांसफर करती है
  2. अकाउंटिंग, स्टेटमेंट आदि जैसे ज़रूरी कार्य करती है
  3. डिपॉजिटरी के पास जो रजिस्टर्ड ब्रोकर्स है उनसे होल्डिंग्स/अकाउंट्स को मिलाया जाता है
  4. भारत में 2 डिपॉजिटरी हैं – सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसिज़ लिमिटेड (CDSL) और नेशनल सिक्योरिटीज़ डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL)
  • रजिस्ट्रार और ट्रांसफर ऑफ एजेंट्स (RTAs): यह वह प्राइवेट कंपनियां हैं जो म्यूचुअल फंड के लिए डिपॉजिटरी के रूप में काम करती हैं।
  1. RTAs इन्वेस्टर द्वारा किए गए हर ट्रेड (रिडेम्पशन, सब्सक्रिप्शन, ट्रांसफर आदि) का रिकॉर्ड रखती हैं
  2. अकाउंटिंग, इन्वेस्टर स्टेटमेंट जैसे ज़रूरी कार्य करती हैं
  3. रिटेल इन्वेस्टर्स का डिपॉजिटरीज के जैसे ही RTAs के साथ भी बहुत ही कम संपर्क होता है और सिर्फ़ अकाउंट स्टेट्मेंट मिलता है तभी सम्पर्क में आते है
  4. RTAs में रजिस्टर्ड AMCs में होल्डिंग/अकाउंट्स को मिलाया जाता है
  5. CAMS और Karvy भारत में दो सबसे बड़े RTA हैं 
म्यूचुअल फंड ट्रांजैक्शन साइकिल
म्यूचुअल फंड ट्रांजैक्शन साइकिल

 

इंटरमिडियरिज वह व्यक्ति या कंपनियाँ हैं जिन्हें SEBI से कैपिटल मार्केट और इन्वेस्टमेंट इकोसिस्टम में कुछ कार्य करने के लिए लाइसेंस दिया गया है। 

  • ब्रोकरेज: यह वह संगठन हैं जो इन्वेस्टर्स के ऑर्डर को ब्रोकरेज फ़ीस लेकर एक्सचेंज में भेजते हैं। इन्वेस्टर सीधे अपने ब्रोकरेज खाते से, या डीलर्स के द्वारा ऐसा करवा सकते हैं। ब्रोकरेज कई बार सलाह देना, रिसर्च करना आदि सेवाएं भी देते हैं।
  • सर्टिफ़ाइड फ़ाइनांसीयल प्लानर्स(Certified Financial Planners): इस शब्द से सभी परिचित है, लेकिन भारत में जब तक ये लोग SEBI के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं तब तक इनका इतना महत्व नहीं है।
  • डीलर या स्टॉक ब्रोकर: यह स्टॉक एक्सचेंज के (और आमतौर पर ब्रोकरज़) द्वारा रखे गए वो सदस्य है जो ग्राहकों की ओर से ऑर्डर कर सकते हैं, और ट्रेडिंग कर सकते हैं।
  • डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट्स (DPs): डिपॉजिटरी के पास रजिस्टर्ड ब्रोकरेज़िस होते हैं, और उनका काम इन्वेस्टर के ट्रेडिंग के अनुसार उनके अकाउंट से स्टॉक या सिक्योरिटीज़ को बढ़ाना/कम करना होता हैं। आमतौर पर खरीद ऑर्डर के लिए कोई DP फीस नहीं होती है और बिक्री ऑर्डर के लिए एक फ्लैट DP-फ़ीस होती है।
  • डिस्ट्रीब्यूटर/एजेंट(Distributors/Agents):कोई भी व्यक्ति (जो इंवेस्टमेंट फर्म या ब्रोकरेज या स्वतंत्र रूप से काम करने वाले हो सकते हैं) जो इन्वेस्टर्स को म्यूचुअल फंड बेचते है और बदले में, कमीशन पाते है जो सभी इन्वेस्टर्स को लगाए गए एक्स्पेंस रेशियो से आती है। डिस्ट्रीब्यूटर का एक AMFI रजिस्ट्रेशन नम्बर (ARN) होता है, लेकिन वह फ़ाइनेंशियल और इन्वेस्टमेंट से सम्बंधित सलाह देने के लिए SEBI द्वारा सर्टिफ़ाइड नहीं होते हैं क्योंकि एक सलाहकार की कुछ बाध्यताएं होती है।
  • रिसर्च एनालिस्ट्स (RAs):यह प्रोफेशनल्स SEBI से लाइसेंस लेकर कैपिटल मार्केट इन्वेस्टमेंट पर रिसर्च अनालिसिस करते है और रिसर्च रिपोर्ट्स तैयार करके पब्लिश करते है। वे या तो एक व्यक्ति हो सकते हैं या एक बड़ी फर्म (जैसे ब्रोकरेज) के हिस्से के रूप में हो सकते हैं। ध्यान रखें, RAs इन्वेस्टमेंट की सलाह नहीं दे सकते।
  • रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइज़र्स (RIAs):यह इक्विटी और अन्य कैपिटल इन्वेस्टमेंट सिक्योरिटीज़ पर फ़ाइनेंशियल प्लानिंग और इन्वेस्टमेंट की सलाह देने वाले प्रोफेशनल्स हैं जो SEBI के पास रजिस्टर्ड होते हैं। RAs के सभी कार्य RIAs कर सकते हैं।
  • पोर्टफोलियो मैनेजर (PMs): SEBI द्वारा इन्हें पोर्टफोलियो को मैनेज करने की अनुमति होती है, इसका मतलब है की पोर्टफोलियो को क्लाइंट की ओर से मैनेज करने के लिए इन्हें क्लाइंट के पोर्टफोलियो पर पूरा कानूनी नियंत्रण दिया जाता है। ये व्यक्ति या फर्म हो सकते हैं (जैसे AMCs जो म्यूचुअल फंड्स ऑफर करते हैं, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसिज़ की फर्म, आदि)। RIAs के सभी कार्य PMs कर सकते हैं।

यह पूरी सूची तो नहीं है, क्योंकि इसका उद्देश्य इन्वेस्टमेंट इकोसिस्टम में ज्यादातर उपयोग में आने वाले शब्दों और एक्टर्स को समझाना है जिनका लोगों के साथ उनकी इन्वेस्टमेंट की यात्रा की शुरूआत से ही पाला पड़ता हैं।

यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा, तो इसे इन्वेस्टमेंट की दुनिया के हर व्यक्ति के साथ ज़रूर शेयर करें।

 

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