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म्यूचुअल फंड डिविडेंड स्कीम से दूर क्यों रहना चाहिए

म्यूचुअल फंड डिविडेंड स्कीम से दूर क्यों रहना चाहिए
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वर्षों पहले जब मैंने पहला म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट किया था, तो वो मैंने अपने पैसे बढ़ाने के लिए किया था। तब, म्यूचुअल फंड एजेंट, जो ख़ुद को “सलाहकार” बताता था और बैंक में RM था, उसने मुझे “डिविडेंड” प्लान के बदले “ग्रोथ” प्लान चुनने की सलाह दी- क्योंकि “ग्रोथ” प्लान लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर के लिए अनुकूल था, जबकि “डिविडेंड” प्लान उन लोगों के लिए ज़्यादा अनुकूल था जो नियमित डिविडेंड इंकम चाहते थे।

मैं ऐसा मानता था कि, म्यूचुअल फ़ंड्स के डिविड़ेंड प्लान में लगाया गया पैसा, डिविड़ेंड देने वाली कंपनियो में इन्वेस्ट किया जाता होगा और उन कंपनियो से मिला डिविड़ेंड हमें दिया जाता होगा। और फिर मुझे आश्चर्य होता था कि ज़्यादातर म्यूचुअल फंड कंपनीयाँ कैसे डिविड़ेंड दे पाती हैं! ज्यादातर भारतीय कंपनियाँ वार्षिक डिविड़ेंड देती है, तो म्यूचुअल फंड कम्पनियाँ हर तीन महीने में डिविड़ेंड कहाँ से देती है?

अभी मैं भारत में डिविड़ेंड इन्वेस्टमेंट की पॉलिसी पर रिसर्च कर रहा था – और इस दौरान मुझे पता चला कि इतने सालों के बाद भी, म्यूचुअल फंड डिविड़ेंड के बारे में और उसके काम के बारे में हम कुछ जानते ही नहीं है आज भी, कई इन्वेस्टर यह सोचकर डिविड़ेंड प्लान चुनते हैं कि उन्हें ज़्यादा इंकम मिलेगी, लेकिन ऐसा शायद ही होता है।

इस लेख में उन सभी चीजों को शामिल किया गया है जो आपको म्यूचुअल फंड डिविड़ेंड के बारे में जाननी चाहिए।

म्यूचुअल फंड डिविडेंड की ज़रूरी बातें

  • भारतीय इन्वेस्टर को दी जाने वाली प्रत्येक इक्विटी ओरियंटेड म्यूचुअल फंड योजना में या तो ग्रोथ-प्लान या तो डिवीडेंड-प्लान का विकल्प होता है
    • डिविडेंड प्लान: इन्वेस्टर को निश्चित समय के बाद डिविड़ेंड मिलता है
    • ग्रोथ प्लान: कोई डिविडेंड नहीं दिया जाता है
  • डिविड़ेंड देने के अलावा, इन दो प्लान में कोई फ़र्क़ नहीं हैं –दोनो प्लान के लिए सभी म्यूचुअल फंड कंपनीयाँ एक ही पोर्टफोलियो रखती है और उसे एक ही फंड मैनेजर एक ही तरीक़े से इन्वेस्ट करता है।
  • उसमें फ़र्क़ सिर्फ़ ग्रोथ प्लान और डिविड़ेंड प्लान के अलग-अलग NAVs में दिखता है।
  • फंड मैनेजर के पास डिविड़ेंड देना,न देना और कितना देना यह निर्णय लेने की अंतिम सत्ता होती है
    • फंड मैनेजर यह भी तय करता है कि आपको डिविड़ेंड देने के लिए ज़रूरत पड़ने पर किन शेर को बेचना है।
    • इस अमाउंट को म्यूचुअल फंड के रिझर्व से भी लिया जा सकता है, खासकर उन वर्षों में जब म्यूचुअल फंड ने उतनी अच्छी कमाई नहीं की हो।
    • म्यूचुअल फंड को डिविड़ेंड जारी करना ज़रूरी है, भले ही उसने नुकसान किया हो। क्योंकि ऐसा न करने पर कई इन्वेस्टर नाराज हो सकते है।

डिविडेंड प्लान्स और डिविडेंड स्ट्रैटेजीज अलग-अलग चीज़ है

  • डिविड़ेंड प्लान में इन्वेस्ट करने का मतलब यह नहीं है कि वो पैसे म्यूचुअल फंड सिर्फ़ अच्छे डिविडेंड देने वाली कंपनियों / शेयरों में इन्वेस्ट करेंगे।
  • वास्तव में, केवल 6 म्यूचुअल फंड प्लान हैं जो कि ज़्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों में इन्वेस्ट करते हैं। ये फंड SEBI की “इक्विटी: थिमेटिक – डिविडेंड यील्ड” केटेगरी में आते हैं, और ये म्यूचुअल फंड हैं : टेंपलटन इंडिया इक्विटी इंकम फंडऔर अन्य 5 डिविडेंड यील्ड इक्विटी फंड वाली आदित्य बिरला सन लाइफ, ICICI प्रूडेंशियल, IDBI, प्रिंसिपल, और UTI
  • ज़्यादातर म्यूचुअल फंड का मक्सद ज़्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियो को खोजने और उनमें इन्वेस्ट करना नहीं होता, बल्कि डिविडेंड प्लान का मक्सद सिर्फ़ कुछ रकम इन्वेस्टर को वापस करने का ही होता है।

NAV पर डिविडेंड का प्रभाव

  • डिविडेंड देने के विभिन्न विकल्प पहले से तय होते हैं और इन्वेस्टर उनमें से चुन सकते हैं
  • क्वार्टरली(तीन महीने) और वार्षिक सबसे आम विकल्प हैं, हालांकि कई म्यूचुअल फंड में मासिक या अर्ध-वार्षिक(छह महीने) विकल्प भी उपलब्ध है
  • डिविडेंड देने के अलग-अलग प्लान में अलग-अलग NAV होती हैं, अर्थात यदि किसी में 4 डिविडेंड प्लान हैं, तो उन 4 प्लान में हर एक की अपनी अलग NAV होगी
  • इन्वेस्टर के खाते में जितना डिविडेंड जमा होता है, उतनी ही रक़म उस दिन उसकी NAV में से कम हो जाती है।
  • उदाहरण के लिए,यदि स्कीम में NAV Rs100 है और डिविडेंड Rs5 / यूनिट है, तो जिस दिन डिविडेंड दिया जाएगा, उसी दिन NAV Rs95 हो जाएगी

स्टॉक डिविडेंड और NAV में फ़र्क़

  • जब कम्पनी स्टॉक पर डिविडेंड देती हैं, तो मार्केट इसे एक मजबूत संकेत मानता है कि कंपनी इतना अच्छा प्रोफ़िट कर रही है की जिससे कम्पनी खुद का विकास करने के बाद भी कुछ रक़म इन्वेस्टर को वापस भी दे रही है।
  • इससे होता यह है की जब कंपनियां डिविडेंड देती है तो आमतौर पर इस पोज़िटिव सिग्नल के कारण स्टॉक की क़ीमत डिविडेंड की रक़म जितनी कम नहीं होती है। स्टॉक डिविडेंड के सिग्नलिंग इफ़ेक्ट के बारे में ज़्यादा जानने के लिए , यह ब्लॉगपोस्ट देखें।
  • म्यूचुअल फंड के ऊपर, सिग्नलिंग इफ़ेक्ट लागू ही नहीं होता है।
    • डिविडेंड देने पर भी NAV नहीं बढ़ती है।
    • असल में, चूंकि डिविडेंड नहीं देने से अक्सर इन्वेस्टर नाराज़ हो जाते हैं, इसलिए कई म्यूचुअल फंड को मार्केट से मजबूरन केपीटल निकालनी पड़ती है, जबकी नहीं निकालने से और फ़ायदा हो सकता था।
  • जब स्टॉक, डिविडेंड की घोषणा करते हैं, तो मूल इन्वेस्टमेंट तो रहता ही है और कम्पाउंडिंग का असर भी बरकरार रहता है –दिया गया कोई भी डिविडेंड मूल इन्वेस्टमेंट को कम नहीं करता है। जबकि, म्यूचुअल फंड डिविडेंड के साथ, यह कंपाउंडिंग इफ़ेक्ट कम हो जाता है क्योंकि इन्वेस्टर समय-समय पर अपने इन्वेस्टमेंट को कम कर देता है।

डबल टैक्सेशन

  • म्यूचुअल फंड में डिवीडेंड पर पहले से ही टैक्स (DDT) लग जाता है, बाद में नहीं लगता है।
  • यदि आप इन्वेस्टमेंट से निश्चित समय पर कुछ इंकम चाहते है, तो डिविडेंड प्लान के बजाय, ग्रोथ प्लान में इन्वेस्ट करके निश्चित समय पर पैसे निकालने की सिस्टम बना सकते हैं।
    • डिविडेंड के रूप में मिली हुई पूरी रक़म पर टैक्स (DDT) देने के बजाय, इस मामले में इन्वेस्टर को केवल प्रोफ़िट पर ही टैक्स देना पड़ता है।
  • मान लीजिए कि यदि कोई म्यूचुअल फंड केवल एक स्टॉक में इन्वेस्ट करता है और म्यूचुअल फंड उसका डिविडेंड इन्वेस्टर को देता है, तो:
    • म्यूचुअल फंड डिविडेंड पर टैक्स (DDT) लग जाएगा।
    • यदि इन्वेस्टर ख़ुद उसी स्टॉक में उतना ही इन्वेस्ट करता है तो डिवीडेंड पर 10 लाख से पहले कोई टैक्स नहीं लगेगा।

निष्कर्ष

  • म्यूचुअल फंड डिविडेंड प्लान में आमतौर पर डिविडेंड से इंकम पाने पर ध्यान नहीं दिया जाता है। म्यूचुअल फंड ने पहले से लिखके दिया हो, तो ही उस पर ध्यान देते है।
  • इसके बजाय, म्यूचुअल फंड का ध्यान इन्वेस्टर को निश्चित समय पर निश्चित रक़म देने में ही होता है, न कि इंकम पर।
  • यदि इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य निश्चित समय पर कुछ निश्चित पैसे निकालने का है तो यह डिविडेंड प्लान की तुलना में अधिक कर-कुशल तरीके से प्राप्त किया जा सकता है, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है।
  • दूसरी तरफ, यदि इंवेस्टमेंट से निश्चित इंकम पाने का उद्देश्य है तो फिर इन्वेस्टर को सीधे स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना चाहिए।
  • उसके लिए ऐसी कंपनियो को खोजना चाहिए जो पहले से ही डिविडेंड देती हो/बढ़ाती आई हो।
  • यदि आपको यह मुश्किल लगता है या लगातार मार्केट  रिसर्च करने और अपडेट रहने का समय नहीं है, तो हमने 4 अलग-अलग स्मॉलकेस बनाए हैं जो आपके लिए यह काम करके देते है

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